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Sunday, December 13, 2020

जब मासूम आंखों में ख़ौफ़ नज़र आने लगे....

 जब बचपन तुम्हारी गोद में आने से कतराने लगे,

जब माँ की कोख से झाँकती ज़िन्दगी,

बाहर आने से घबराने लगे,

समझो कुछ ग़लत है ।

जब तलवारें फूलों पर ज़ोर आज़माने लगें,

जब मासूम आँखों में ख़ौफ़ नज़र आने लगे,

समझो कुछ ग़लत है

जब ओस की बूँदों को हथेलियों पे नहीं,

हथियारों की नोंक पर थमना हो,

जब नन्हें-नन्हें तलुवों को आग से गुज़रना हो,

समझो कुछ ग़लत है

जब किलकारियाँ सहम जायें

जब तोतली बोलियाँ ख़ामोश हो जाएँ

समझो कुछ ग़लत है

कुछ नहीं बहुत कुछ ग़लत है

क्योंकि ज़ोर से बारिश होनी चाहिये थी

पूरी दुनिया में

हर जगह टपकने चाहिये थे आँसू

रोना चाहिये था ऊपरवाले को

आसमान से

फूट-फूट कर

शर्म से झुकनी चाहिये थीं इंसानी सभ्यता की गर्दनें

शोक नहीं सोच का वक़्त है

मातम नहीं सवालों का वक़्त है ।

अगर इसके बाद भी सर उठा कर खड़ा हो सकता है इंसान

तो समझो कुछ ग़लत है l

- Prasoon Joshi






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