बारूद जब बच्चा था तब तितली पकड़ता था
वो अमिया भी चुराता था, पतंगों पर झगड़ता था
तुम उसका मांझा भी लूटते वो कुछ नही कहता
थोड़ा नाराज तो होता मगर फिर भी वो खुश रहता
मगर धोखे से तुमने उसका बचपन भी तो लूटा है
जरा देखो तो उसकी आंख में वो कब से रूठा है
जुगनुओं की रोशनी में दिल लगाने दो उसे
धूप के सिक्के उठा के गुनगुनाने दो उसे
बैगनी कंचे हथेली पर सजाने दो उसे
भोली भाली रहने दो, जिंदगी को बहने दो
बहुत जल्दी दुपट्टे ओढ़ना सिखला रहे हैं हम
क्यों जिंदगी को रात से मिलवा रहे हैं हम
वो पल्लू से चिपककर मां की चलती थी तो अच्छी थी
अकेले छोड़कर उसको क्या कहना चाह रहे है हम
एक गहरी नींद से जगाने दो उसे
धूप के सिक्के उठाके गुनगुनाने दो उसे
बैगनी कंचे हथेली पर सजाने दो उसे
भोली भाली रहने दो, जिंदगी को बहने दो
बारूद जब बच्चा था तब तितली पकड़ता था।
- Prasoon Joshi
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