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Tuesday, October 17, 2017

चलो हंसी को रिवाज कर ले - प्रसून जोशी

चलो हंसी को रिवाज कर ले।  

है मौन एक मोतियों की माला। 
कभी किसी पल जो टूटे टक से। 

तो टिप्पे खाते हजार मोती। 
यू खिलखिलायेंगे जैसे सोते से पानी जागा हो बाद बरसों के जंगलों में। 

कभी हुआ ना जो आज कर ले।  
चलो हंसी को रिवाज कर ले।  
हंसी लुटा के हंसी जुटा ले।  


ये छोकरी है पलिश्त भर की।  
मगर है करतूत कमाल इसकी। 
लगा के ठट्ठे जो गूंजती है हवेलियों में पुराने चांदी के बर्तनों को रगड़ रगड़ के कोई दिखाता हो धूप जैसे।

नए नगीने तलाश कर ले।  
चलो हंसी को रिवाज कर ले। 

कभी जो बागों में झूलती है ये खट्टे आमों की कैरियों सी ख़टास लेकर।  
या फिर गली में भी दौड़ती है ये फालसे की हरेक ढेरी पे अपने जन्मों का हक़ समझकर। 

ये तोतलीसी चवन्नी लेकर सुलगते गुस्से पे टूट पड़ती है जैसे छीट बनकर।  
पलक झपकते ही दूर हो जाती है खिल्लीयों सी।  

ये दूर है इसको पास कर लें।  
चलो हंसी को रिवाज कर लें।  

- प्रसून जोशी 

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